जीवन रण
जग जगत जीया जाये रे मन
रम-रमणीत अरण्य के-से पग में
होना विव्हल जीवन रण से, ले प्रण
कर वहन समन, लक्ष्य भेदन
कर्म-योग में कर्म-हीनता न रहता है
अक्षर का क्षर कभी न होता है
जीवन संग्राम के रथ का स्वयं सारथी बनो
"कुछ तो करोगे पार्थ" कान्हा ये कहता है
मुरली
(२७.०४.2017)
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